हिन्दू समाज के स्थायी जागरण की आवश्यकता - डॉ. निशा शर्मा





हिन्दू समाज सृष्टि के प्रारंभ से ही अपनी अद्वितीयता और दैवीय विशेषताओं के लिए विख्यात रहा है। जब संसार के अन्य भागों में भाषा का आविष्कार भी नहीं हुआ था, तब भारत में ऋग्वेद जैसे महान ग्रंथों का सृजन हो चुका था। धर्म, अध्यात्म, विज्ञान, खगोल, संगीत, युद्ध, भूगोल जैसे विषयों में हिन्दू समाज ने अतुलनीय योगदान दिया। यह समाज केवल भौतिक विकास में ही नहीं, बल्कि आत्मिक विकास में भी अग्रणी रहा है।


प्राचीन गौरव और आर्य साम्राज्य

प्राचीन काल में हिन्दू समाज ने चक्रवर्ती सम्राट के रूप में समस्त भूमंडल पर राज्य किया। इस साम्राज्य का आधार केवल शक्ति नहीं, बल्कि लोकसेवा और परमार्थ था। राम द्वारा रावण का वध और विभीषण को सोने की लंका सौंपने का उदाहरण यह दिखाता है कि हिन्दू शासन का उद्देश्य केवल विजय नहीं, बल्कि लोकहित था।


हमारी भारतभूमि, जो कभी स्वर्णभूमि कहलाती थी, अपने गौरवशाली इतिहास के लिए जानी जाती थी। वसुधैव कुटुंबकम और सद्चरित्र जैसे जीवनमूल्यों ने हिन्दू धर्म को श्रेष्ठ बनाया। यही कारण है कि भारत को "जगतगुरु" की उपाधि प्राप्त थी।


पतन के कारण और वर्तमान स्थिति

पिछले एक हजार वर्षों में बाहरी आक्रमणों और भीतरी दुर्बलताओं के कारण हिन्दू समाज ने अपना यह गौरव खो दिया। मुग़ल काल में मंदिरों का विध्वंस और सांस्कृतिक अपमान हमारे समाज की कमजोरियों का प्रमाण है। काशी, मथुरा और अयोध्या जैसे स्थान इस दमन के प्रतीक हैं।


आज भी हिन्दू समाज अनेक चुनौतियों का सामना कर रहा है। बांग्लादेश, पश्चिम बंगाल और केरल जैसे स्थानों में हिन्दुओं की दुर्दशा इस बात का प्रमाण है कि हमारी दुर्बलता अब भी हमारे लिए घातक सिद्ध हो रही है।


स्थायी जागरण की आवश्यकता

इतिहास साक्षी है कि जिन समाजों ने अपने गौरवशाली अतीत से प्रेरणा ली, वे कभी विलुप्त नहीं हुए। इंग्लैंड, जर्मनी और इज़राइल जैसे देशों में राष्ट्रभक्ति और सामर्थ्य का संस्कार बचपन से ही डाला जाता है। इसके विपरीत, हिन्दू समाज में यह जागरण केवल अस्थायी होता है। यही कारण है कि हम अपनी पहचान को स्थायी रूप से सुदृढ़ नहीं कर पाते।


स्वामी विवेकानंद ने कहा था, “उठो, जागो और तब तक न रुको, जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।” आज हिन्दू समाज को स्थायी रूप से जागरूक होने की आवश्यकता है। यह जागरण केवल धार्मिक आयोजनों, अनुष्ठानों और गोष्ठियों तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि इसे समाज की मानसिकता और जीवनशैली का हिस्सा बनाना होगा।


समाप्ति

हिन्दू समाज का स्थायी पुनर्जागरण ही उसे पुनः चक्रवर्ती सम्राट बना सकता है। धर्म, संस्कृति और आत्मिक शक्ति के संरक्षण के लिए सभी हिन्दुओं को एकजुट होकर प्रयास करना होगा। जब हिन्दू चेतना स्थायी रूप से जाग्रत होगी, तभी भारत पुनः "विश्वगुरु" की उपाधि प्राप्त करेगा।


डॉ. निशा शर्मा

विभाग कार्यवाहिका

राष्ट्र सेविका समिति

हरिगढ़, ब्रज प्रांत


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