शिवपुरी-न्यायाधीश अमनदीप सिंह छाबड़ा की अध्यक्षता में 14 दिसंबर को आयोजित राष्ट्रीय लोक अदालत न केवल न्याय का मंच बनी, बल्कि इंसानियत और सहानुभूति का प्रतीक भी बनी।
इस अदालत में एक आंशिक रूप से दृष्टिहीन महिला की कहानी ने सभी का दिल छू लिया। महिला ने प्रधानमंत्री स्वरोजगार योजना के तहत ऋण लेकर अपने पैरों पर खड़े होने का सपना देखा था, लेकिन कोविड लॉकडाउन ने उसे आर्थिक संकट में धकेल दिया। उसके बाद साढ़े 3 लाख का कर्ज और चेक बाउंस का मामला उसके आत्मसम्मान पर भारी पड़ रहा था।
लोक अदालत ने न केवल कानून की भाषा बोली, बल्कि मानवीय संवेदनाओं को समझा। अदालत के प्रयासों से बैंक ने उसके ऋण को एक लाख 26 हजार रुपए तक घटा दिया और चेक बाउंस का मामला भी वापस ले लिया। महिला के चेहरे पर राहत और आंखों में नई उम्मीद दिखी।
लोक अदालत के माध्यम से यह केवल कर्ज का निपटारा नहीं था, यह उसके आत्मविश्वास और उसके सपनों को एक नई दिशा देने की शुरुआत थी। इसके अलावा, कई रोचक मामले लोक अदालत के सामने आए।एक बाप-बेटे के विवाद को संवाद के जरिए सुलझाया गया, जिससे उनके रिश्ते में फिर से विश्वास बहाल हुआ। दो भाइयों के पैतृक संपत्ति विवाद का निष्पक्ष समाधान हुआ, जबकि पति-पत्नी के झगड़े को परामर्श के माध्यम से हल कर उन्हें नई शुरुआत दी गई। छोटे झगड़ों और पारिवारिक विवादों को भी शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाकर रिश्तों में सौहार्द कायम किया गया।