★अहमदाबाद के एक स्कूल में तीसरी कक्षा में पढ़ने बाली 8 साल की बच्ची को अचानक हार्ट अटैक आया और उसकी मौत हो गयी।सुबह 8 बजे जब बच्ची स्कूल की सीढ़ियां चढ़ रही थी तो उसे पहले छाती में दर्द हुआ तो चेयर पर बैठ गई लेकिन चंद सेकंड्स में बच्ची जमीन पर गिर गई।यह घटना स्कूल के cctv कैमरे में रिकॉर्ड हुई और चोकाने बाली है।इससे पूर्व ठीक इसी तरह की घटना भिंड में घटित हुई थी जहाँ स्कूल में एक बालक की मौत हुई थी और उसे भी हार्ट अटैक हुआ था।इन्हें सामान्य घटना नही माना जा सकता।
दोनों घटना बेहद दुखद और चौंकाने वाली है। इतनी कम उम्र में हार्ट अटैक जैसी गंभीर समस्या का होना समाज और स्वास्थ्य तंत्र के लिए एक बड़ा प्रश्नचिह्न खड़ा करता है।प्रश्न उठता है कि आखिर नोनिहालो में इन गम्भीर बीमारियों की वजह क्या है..?
विशेषज्ञों के अनुसार, बच्चों में हार्ट अटैक दुर्लभ है, लेकिन हाल के वर्षों में इसकी घटनाओं में वृद्धि चिंताजनक है।
ग्लोबल डेटा के आंकड़े विचलित करते है।विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की एक रिपोर्ट के अनुसार, हर साल लगभग 17.9 मिलियन लोग हृदय रोगों से मरते हैं, लेकिन इनमें से 2-3% मामले बच्चों से जुड़े होते हैं।भारत में हृदय रोग से संबंधित कुल मृत्यु दर 272 प्रति 1 लाख है, जो वैश्विक औसत 235 प्रति 1 लाख से अधिक है।
2024 में उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में 25 दिनों के भीतर 7 से 14 वर्ष की उम्र के दो बच्चों की हार्ट अटैक से मौत हुई।
विशेषज्ञ मानते हैं कि बच्चों में हार्ट अटैक के पीछे बदलती जीवनशैली, स्क्रीन टाइम, और अस्वस्थ आहार जैसे कारक मुख्य भूमिका निभाते हैं।
स्वास्थ्य से जुड़े जानकर ओर विशेषज्ञ मानते है कि बच्चों में शारीरिक गतिविधियों की कमी, अस्वस्थ आहार और स्क्रीन टाइम का बढ़ना अर्थात बदलती जीवन शैली इसकी एक खास वजह हो सकती है।इसके अलावा कभी-कभी जन्मजात हृदय रोग (Congenital Heart Defect) या अनजान स्वास्थ्य समस्याएं, जो समय पर पहचान में नहीं आ पातीं,वह भी प्रमुख कारण बन सकती है।
इसके अलावा एक ओर महत्वपूर्ण कारक शिक्षा के क्षेत्र में बढ़ती हुई प्रतिस्पर्धा ने नोनिहालो के मष्तिष्क में तनाव पैदा कर दिया है। हम भले यह सोचे की इस उम्र में कैसा डिप्रेशन मगर पढ़ाई और प्रतिस्पर्धा का बढ़ता दबाव भी बच्चों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर असर डाल रहा है।कोरोना काल की ऑनलाइन क्लासेस ने अब उन्हें मोबाइल का भी आदी बना दिया।प्रदूषण, मिलावटी भोजन,हेल्दी फ़ूड के बजाय तेजी से बढ़े फास्टफूड कल्चर बच्चों की प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर बना रही हैं।
वर्तमान में कारकों पर गम्भीर चिंतन आवश्यक है मगर स्वास्थ्य सुरक्षा विषय पर भी गम्भीर होने की आवश्यकता है।
स्कूलों में प्राथमिक चिकित्सा (First Aid) और तुरंत मदद के लिए पर्याप्त व्यवस्था होना चाहिए साथ ही बच्चों के स्वास्थ्य की नियमित जांच प्राथमिकता से हो।सर्वाधिक महत्वपूर्ण है स्कूलों में पढ़ाई का दबाव कम करने के लिए आवश्यक कदमो का उठाया जाना।प्रतिस्पर्धा की दौड़ में नोनिहालो पर अनावश्यक इतनी किताबे थोप दी जाती है कि भारी भरकम बस्तों के बोझ से उनकी कमर झुक जाती है।वे खेल जैसी गतिविधियों में पिछड़ जाते है जो स्वास्थ्य के लिये आवश्यक है
सामने आती जा रही स्थितियों को लेकर बच्चो के स्वास्थ्य के विषय पर सतर्कता जरूरी है। बच्चों और अभिभावकों को नियमित स्वास्थ्य जांच और स्वस्थ जीवनशैली के प्रति जागरूक होना पड़ेगा।बच्चों पर मनोवैज्ञानिक दबाव कम करने के लिए स्कूलों में काउंसलिंग और सहायक माहौल बनाना आवश्यक हो गया है।।सरकार को बच्चों के स्वास्थ्य से जुड़े कार्यक्रमों को प्राथमिकता देनी चाहिए।घरों में हर अभिभावक को अपने बच्चों के खान-पान, दिनचर्या और मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना चाहिए। बच्चों की छोटी-छोटी शिकायतों को नजरअंदाज करने के बजाय समय पर चिकित्सकीय सलाह लेनी चाहिए।
यह घटना न केवल एक परिवार के लिए अपूरणीय क्षति है, बल्कि पूरे समाज के लिए एक चेतावनी है। हमें मिलकर बच्चों के स्वास्थ्य और उनकी सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।
*✍️बृजेश सिंह तोमर*
(वरिष्ठ पत्रकार एवं चिंतक)
शिवपुरी
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