*🎯मीडिया का मौजूदा दौर: सत्य की खोज या प्रोपगैंडा का युग....?🎯



(✍️बृजेश सिंह तोमर)

👉लोकतंत्र के स्वयम्भू ही सही ,चौथे स्तंभ के रूप में मीडिया ने हमेशा समाज को दिशा देने का कार्य किया है। खबरों की निष्पक्षता, सटीकता और जनहित का दृष्टिकोण ही इसकी पहचान रहा है। लेकिन आज का मीडिया अपने सबसे कठिन दौर से गुजर रहा है। यह वह समय है जब खबरें तथ्यों के बजाय एजेंडे और सनसनीखेज प्रस्तुतियों के आधार पर गढ़ी जा रही हैं।


पिछले कुछ दशकों में मीडिया का स्वरूप तेजी से बदला है। समाचारपत्रों और रेडियो के दौर से लेकर डिजिटल और सोशल मीडिया तक, सूचना के माध्यम बढ़े हैं, लेकिन इसकी गुणवत्ता पर सवाल उठने लगे हैं। अब खबरें समाज के मुद्दों को उठाने के बजाय 'टीआरपी'की दौड़ में फंस गई हैं। हर खबर को ‘ब्रेकिंग’ का तमगा देकर प्रस्तुत किया जाता है, भले ही वह समाज के लिए कितना ही अप्रासंगिक क्यों न हो।समाज मे विकृति लाने वाले विषयो पर स्क्रीन पर बैठकर घण्टो बहस की जाती है भले उसके परिणाम कुछ न निकले।सीमा विवाद या सुरक्षा जैसे मामलों पर "न्यूज़ रूम"को "वॉर रूम(युद्ध मैदान)"बना दिया जाता है जहाँ से एंकर खुद बमबारी पर उतारू हो जाते है।इन्वेस्टिगेशन की दिशा की कलई परत दर परत खोल दी जाती है जहाँ से अपराधीतत्व को उल्टे अपराध में सावधानी बरतने का ज्ञान मिल जाता है


मीडिया का एक प्रमुख उद्देश्य सत्ता,शाशन,प्रशाशन पर नजर रखना और उन्हें जनता के प्रति जवाबदेह बनाना था,जनमानस की बात को उन तक पहचाना था। "सम्पर्क"के एक "सेतु"के रूप में थी मीडिया लेकिन आज उसका एक बड़ा वर्ग सत्ता का पक्षधर बनकर दहलीज पर नाक रगड़ता नजर आ रहा है। ऐसी खबरें गढ़ी जाती हैं, जिनका उद्देश्य जनमत को नियंत्रित करना और एक विशेष दृष्टिकोण को बढ़ावा देना होता है। इससे न केवल सच्चाई छिपाई जाती है, बल्कि समाज को गुमराह भी किया जाता है।खबर की प्रस्तुति वो नही होती जो वह है बल्कि वह होती है जो आका चाहते है।


सोशल मीडिया के आगमन ने मीडिया के परिदृश्य को और अधिक जटिल बना दिया है। पहले खबरें विश्लेषण और संपादन की प्रक्रिया से गुजरती थीं, लेकिन अब हर कोई खबरों का निर्माता और उपभोक्ता बन गया है। यह स्थिति इसलिए खतरनाक है क्योंकि झूठी खबरों और अफवाहों का प्रसार अब तेजी से हो रहा है।खबर या विषय का अल्प ज्ञान रखने बाला भी उस खबर को परोस बैठता है।


फेक न्यूज़ और प्रोपगैंडा ने मीडिया की साख को भारी नुकसान पहुंचाया है। चाहे राजनीतिक मुद्दे हों या सांप्रदायिक विवाद, फर्जी खबरें समाज में अस्थिरता और अविश्वास पैदा कर रही हैं। यह स्थिति केवल जनता के विवेक से ही नहीं, बल्कि मीडिया की नैतिकता से भी जुड़ी हुई है।सनसनीखेज बनाने की चाह में रक्षा अथवा सुरक्षा से जुड़े गोपनीय मामलों को सार्वजनिक कर दिया जाता है जो गलत है।इससे न केबल गोपनीयता भंग होती है बल्कि अपराधी भी सतर्क हो जाता है।


लेकिन हर समस्या का समाधान है। मीडिया को फिर से जनता के लिए काम करने की जरूरत है। पत्रकारिता को व्यापार नहीं, "सेवा" के रूप में देखा जाना चाहिए। खबरों की सच्चाई और निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए कठोर नीतियों और फैक्ट-चेकिंग की नवीन तकनीक की आवश्यकता है।हालांकि इस दिशा में तकनीकी प्रयास निरन्तर जारी है।पत्रकार प्रोटेक्शन एक्ट भी आवश्यक हो गया है क्योंकि सच कहने का साहस रखने बाले कलमकार सत्ताधीशों,माफियाओं द्वारा रौंदे जा रहे है।


मीडिया का उद्देश्य समाज को जोड़ना और सशक्त बनाना है, न कि उसे बांटना। जब तक मीडिया सच्चाई और नैतिकता के मार्ग पर नहीं लौटता, तब तक समाज में स्थिरता और विश्वास स्थापित करना कठिन होगा। जनता को भी यह समझने की जरूरत है कि हर खबर पर भरोसा नहीं किया जा सकता। तथ्य और स्रोतों की जांच करना समय की मांग है।


आज, मीडिया का यह भटका हुआ रास्ता किसी एक व्यक्ति या संस्थान का दोष नहीं, बल्कि पूरे समाज के आत्मनिरीक्षण का विषय है। यदि हम चाहते हैं कि मीडिया अपनी भूमिका निभाए, तो हमें भी जागरूक और जिम्मेदार नागरिक बनना होगा। यह एक ऐसा परिवर्तन है जो न केवल मीडिया, बल्कि पूरे समाज को मजबूत करेगा।


✍️बृजेश सिंह तोमर

(वरिष्ठ पत्रकार एवं चिंतक)

        शिवपूरी

*📲7999881392*

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