"हमारी आंखों के सामने मौत नाच रही थी… और कोई नहीं था जो हमें बचा सके!"




हनीमून पर गए थे प्यार की तस्वीरें लेने… लौटे तो सीने में डर की कहानियां लेकर।

जयपुरा - जयपुर के मुरलीपुरा से ताल्लुक रखने वाले नवविवाहित दंपती को क्या पता था कि कश्मीर की वादियां, जो फिल्मों में सिर्फ रोमांस से भरी दिखती हैं, एक दिन उनकी जिंदगी की सबसे डरावनी हकीकत बन जाएंगी।

वो सुबह थी, जब सूरज ने मुस्कुराकर स्वागत किया था।

बेसरन घाटी के खुलते नज़ारों के बीच कोमल और मिशिर सेल्फी ले रहे थे। चारों ओर पहाड़, बर्फ, और खूबसूरत हरियाली। तभी अचानक… “धायं…धायं…धायं!”

गोलियों की आवाज़ें गूंजने लगीं।

जो मुस्कान थी, वो चीख में बदल गई। जो सेल्फी थी, वो सीन ऑफ टेरर बन गई।

सेना की वर्दी में आतंकियों ने सामने आकर बंदूक तान दी। एक गोली चली — किसी के सीने में लगी। दूसरी चली — पास से गुज़री। तीसरी — सीधे एक पर्यटक के सिर में! और वो लड़खड़ाकर गिर गया… वहीं हमारे सामने।

"हम चीख पड़े – कोई है? कोई मदद करो!"

लेकिन वहां हर कोई अपनी जान बचाने में लगा था। कोई नहीं रुका। कोई नहीं पलटा। ये वो पल था जब इंसानियत भी दूर भाग चुकी थी।

हमारे पास न हथियार थे, न रास्ता… बस एक-दूसरे का साथ था।

किसी तरह जंगल की तरफ भागे। तभी दिखा एक घोड़े वाला… लेकिन उसने कहा — "घोड़ा चाहिए? 4000 रुपये लगेंगे!"

जान बचाने की कीमत तय हो चुकी थी। हमने फौरन पैसे दिए और किसी तरह वहां से जान बचाकर पहलगाम पहुंचे।

लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती…

रात को होटल में टीवी खोला तो देखा — "लेफ्टिनेंट विनय नरवाल" नाम के जांबाज़ अफसर ने उसी जगह पर आतंकियों को ढेर कर दिया था।

"अगर वो न होते… तो शायद आज हम ये कहानी सुनाने के लिए जिंदा न होते।"

अब जब भी हम एक-दूसरे को देखते हैं, आंखों में सिर्फ प्यार नहीं — शुक्र और एक नया जीवन बसता है।

कश्मीर हमारे लिए अब सिर्फ हनीमून डेस्टिनेशन नहीं, बल्कि एक पुनर्जन्म की जगह बन गया है।

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